मेरे खुदा को शायद यही मंज़ूर था
मेरे खुदा को शायद यही मंज़ूर था
बिछड़ गया वह पुष्प मजबूत लता से ,
जिसे खुद पर बड़ा गुरूर था l
सजना होगा उसे देव शीष पर ,
खुदा को भी शायद वही मंज़ूर था l
झोकों ने सिखाया जूझना उस नांव को ,
जिसका साहिल बहुत ही दूर था l
झोंको से जूझना असल नाविक के लिए
जैसे अलग ही इक सुरूर था l
न पद , न ओहदा
पर सिर्फ सद्कर्मों के लिए ही मैं बड़ा मशहूर था l
पर कुछ यूं तराशा उस खुदा ने भी ,
जैसे में वह बहुमूल्य कोहिनूर था l
क्या शुक्रिया करूं अदा खुदा का ,
इनायतों के लिए जी जिसकी मैं तनिक ।