मेरे खुदा को शायद यही मंज़ूर था
मेरे खुदा को शायद यही मंज़ूर था
बिछड़ गया वह पुष्प मजबूत लता से ,जिसे खुद पर बड़ा गुरूर था l
सजना होगा उसे देवशीष पर , खुदा को भी शायद वही मंज़ूर था l
झोंको ने सिखाया जूंझना उस नांव को , जिसका साहिल बड़ी दूर था l
झोंको से जूझना नाविक असल के लिए जैसे अलग ही इक सुरूर था l
न पद , न औेदा पर सिर्फ सद्कर्मों के लिए ही मैं बड़ा मशहूर था ।
और कुछ यूं तराशा उस खुदा ने भी , जैसे में वह बहुमूल्य कोहिनूर था l
क्या शुक्रिया करूं अदा खुदा का , इनायतों के लिए ही जिसकी मैं तनिक मगरूर था
सत्मर्ग पर अडिग रखा है जिसने , पर बुराइयों से में भी कुछ चश्मेबददूर था l
प्रताड़ना ‘ व ‘ उपहास‘ रूपी उन तक्षणा का दर्द बेशक बड़ा मधुर था।
उन तक्षणाओं के पश्चात् ही निखारना , कुदरत का भी शायद यही दस्तूर था ।
पर बुराइयों के उस तमस में अच्छाई रूपी तरा ज़मीन टिमटिमाने को आतुर था ।
हो - न - हो पर हर इक अहित में छुपा हित भी मेरा कुछ न कुछ तो ज़रूर था ।
जो मेरे खुदा की भी वही मंज़ूर था ,हां मेरे खुदा की शायद यही मंज़ूर था ।