STORYMIRROR

Shrikrut Kuraware

Inspirational

4  

Shrikrut Kuraware

Inspirational

मेरे खुदा को शायद यही मंज़ूर था

मेरे खुदा को शायद यही मंज़ूर था

1 min
221

बिछड़ गया वह पुष्प मजबूत लता से,

जिसे खुद पर बड़ा गुरूर था।

सजना होगा उसे देव शीष पर,

खुदा को भी शायद वही मंज़ूर था।


झोंको ने सिखाया जूझना उस नांव को

जिसका साहिल बड़ी दूर था।

झोंको से जूझना नाविक असल के लिए

जैसे अलग ही इक सुरूर था।


न पद, न ओहदा पर सिर्फ सद्कर्मों के

लिए ही मैं बड़ा मशहूर था।

और कुछ यूं तराशा उस खुदा ने भी

जैसे मैं वह बहुमूल्य कोहिनूर था।

                              

क्या शुक्रिया करूं अदा खुदा का,

इनायतों के लिए जी जिसकी मैं तनिक मग्रूर था।

सतमार्ग पर अडिग रखा है जिसने,

पर बुराइयों से मैं भी कुछ चश्मेबद्दूर था।


प्रताड़ना व उपहास रूपी उन

तक्षणा का दर्द बेशक बड़ा मधुर था।

उन तक्षणाओं के पश्चात् ही निखारना,

कुदरत का भी शायद यही दस्तूर था।


पर बुराइयों के उस तमस में अच्छाई रूपी

तरा ज़मीन पर टिमटिमाने को आतुर था।

हो न हो पर इक अहित में छुपा हित भी

मेरा कुछ - न - कुछ तो ज़रूर था।


जो मेरे खुदा को भी वही मंज़ूर था।

हां, मेरे खुदा को शायद यही मंज़ूर था।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational