प्रेम का इज़हार
प्रेम का इज़हार
बीत चुके हैं कई बरस
मैं छुप छुप कब तक प्यार करूँ
कहो तुम्हीं कि प्रेम का अपने
कैसे मै इज़हार करूँ।।
जब से तुझको देखा रूपसी
नींद उड़ी और चैन छीन गये
किसको दोषी ठहराऊँ
जब दुश्मन खुद के नैन बन गये
थक चुका हूंँ समझाकर
इस दिल से कब तक रार करूँ
कहो तुम्हीं कि प्रेम का अपने
कैसे मैं इज़हार करूँ।।
ख़ता तेरे अधरों के भी
और सौम्य मुखड़े के हैं
श्वेत पुष्प की पंखुड़ी सी
चाँद के इस टुकड़े के हैं
फिर भी मान ख़ता इस दिल की
स्वीकृति हर बार करूँ
कहो तुम्हीं कि प्रेम का अपने
कैसे मैं इज़हार करूँ।।

