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Archana Singh

Romance

4  

Archana Singh

Romance

प्रेम का धागा

प्रेम का धागा

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 आज तन्हाई में बैठ कर मैंने दिल में 

अपनी भावनाओं का धागा बुना 

प्यार के रंगीन रंग में रंगा इसे 

और नाम इस पर तेरा मेरा लिखा


 इस प्यारे धागे का एक सिरा

मेरे दिल से जुड़ा और दूसरा तेरी ओर गया l

गर पकड़ना चाहो तो वह सिरा तुम पकड़ लो

धागा खुद ही खींचता साथ तुम्हारे जाएगा 


तुम कहीं भी जाओ यह खत्म ना हो पाएगा 

है पूरा यकीन साथ उम्र भर यह निभाएगा l

गर पकड़ने के बाद छोड़ दिया इसे

 बस तब यह धागा उलझ जाएगा 


बताओ भला इसे फिर कौन सुलझाएगा? 

वक्त अगर इसे सुलझा भी ले  

तो धागे में पड़े कई जोड़ होंगे 

रिश्तो में आ चुके कई नए मोड़ होंगे


तुम भी यह मानोगे कि गांठ तो गांठ ही होती है 

ये सच्चे प्यार पर आँच है तभी तो कहती हूंँ

गर कुव्वत नहीं है इसे ताउम्र थामने का तो 

कोई बात नहीं, दूसरा सिरा मुझे लौटा दो अभी


क्योंकि मेरे सीधे प्यार का सीधा धागा है अभी

समेट कर इसे मैं न उलझने दूंगी

अपने अरमानों को यूं ना बिखरने दूंगी l

क्योंकि बहुत अजीज है मुझे जज्बात मेरे


जिगर के टुकडे हैं, इस धागे में बसे ख्वाब मेरे

गर कर सको भरोसा मेरा, इस सिमटे धागे में भी 

इंतजार होगा, पुकार होगी, उम्मीद होगी, प्यार होगा

और मरते दम तक, धागे पर लिखा तेरा नाम होगा।


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