समय ही नहीं है
समय ही नहीं है
मानव विकास क्या हुआ
आज फुर्सत नहीं है
किसी के पास
कि पोंछ दें
झुर्रियों में लिपटे
चेहरों पर लुढ़के
आंसुओं के कतरों को
आज वक्त नहीं है
किसी के पास
कि खोल सके अपने सुख-दुख की गठरी
किसी के पास बिताकर दो घड़ी
आज अवकाश नहीं है
किसी के पास कि
सुन सके आवाज
भावनाओं में लिपटी हुई
संवेदनाओं से भीगी हुई
आज वो बेला ही नहीं है
किसी के पास कि
दे दे थोड़ा सा प्रेम- रस
रिश्तों के मुरझाए से उपवन को
आज अवधि ही नहीं है
किसी के पास कि
वक्त हुआ इतना महंगा
छुड़ा रहे हर रिश्ते हाथ
यह कह कर कि देर हो रही है
आज समय ही नहीं है
किसी के पास
विकास क्या हुआ कि
आज समय ही
नहीं है किसी के पास ll
