प्रेम जंग का मैदान है
प्रेम जंग का मैदान है


प्यार करना तो बहुत आसान है पर निभाना सबको नहीं आता है
प्यार में मौसम बदलते हैं कभी मधु ऋतु तो कभी पतझड़ मिलते हैं
प्यासा तन –मन विलुप्त हो जाता और समंदर-सा मन घिर आता है
जब सच्चे प्यार करने वालों का साथ निर्दयी समाज को नहीं भाता है
तब तो अपने उस सच्चे प्यार को पाना जंग का मैदान बन जाता है
जिसमें आग का दरिया होता है और उसे तैर कर पार करना होता है
प्यार को पाने के लिए लड़ना होता है हर बाधाओं से भिड़ना होता है
हर परिस्थितियों को बदलकर उन्हें पतझड़ को बसंत बनाना होता है
ये प्यार तो जंग का मैदान है हर कदम पर संभलकर चलना होता है I