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Kunda Shamkuwar

Romance

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Kunda Shamkuwar

Romance

प्रेम होना...प्रेमिल होना...

प्रेम होना...प्रेमिल होना...

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प्रेम में दिखावा होता है क्या?

प्रेम जाहिर करने की चीज़ थोड़े ना होती है...

प्रेम को महसूस किया जाता है... 

यह तो अहसास होता है...

एक जादुई अहसास...

कविता की इन पंक्तियों को पढ़ते हुए वह सोचने लगी

सच तो कह रहे है कवी महाशय !!

वह भी प्रेम में पड़ती रही है... 

हर बार.…

पहली बार उसे प्रेम हुआ था...

वही पचास पार वाला प्रेम !!!

प्रेम भले ही हुआ था लेकिन उसका जिक्र भी वह कर नही सकती...

खास कर वह जानती थी कि उन्हें वह पा नही सकेगी...

उनकी न जाने कितनी बातें भा गयी थी उसे...

उनका वह इंटेलिजेंस !!

उनकी वह सादगी...

और वह हम्बलनेस

ग्राउंड टु अर्थ वाला एटीट्यूड...

और भी न जाने क्या क्या ???

लेकिन जानते हुए भी की इस प्रेम में पाना नही होगा

फिर भी उसे प्रेम हुआ था.....

यही तो प्रेम है... 

यही तो प्रेम की खूबसूरती है...

प्रेम कभी खत्म न होने वाला अहसास है....

इसी नियम से उसे फिर प्रेम हुआ...

इस बार जो प्रेम हुआ वह भी कमोबेश पुराने प्रेम की तरह ही था..

वही उनके इंटेलिजेंस पर...

उनके शब्दों की जादूगरी करने वाली कला पर...

उनके केयरिंग करने वाली आदत पर....

'तुम स्पेशल हो' यह जताने वाली उनकी बॉडी लैंग्वेज पर....

उनके रिस्पेक्टफूली बातें करने वाली सोच पर....

इस बार भी प्रेम में खोये रहना ही था ....

उन्हें पाना नही था.... 

लेकिन प्रेम तो  प्रेम ही है...

जो निरंतर रहता है... 

जीवन की अंतिम साँसों तक....

उसे विश्वास है की फिर उसे प्रेम होगा...

फिर किसी ऐसे व्यक्ति से....

जो सच्चा होगा...

सह्रदय होगा...

जीवन से भरपूर होगा...

ईमानदार होगा..…

उसका मन फिर प्रेम में रमना चाहता  है वह  फिर प्रेम की खोज में रहता है.....

निरंतर....

सच्चे और अच्छे प्रेम की खोज में...

जीवन भर...जिंदगी के अंतिम छोर तक...



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