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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

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Dr Jogender Singh(jogi)

Romance

प्रेम दीपक

प्रेम दीपक

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जलते दिये की लौ से निकल आते हो तुम,

कभी कभी।

पास में बैठ, फिर यूँ ही मुस्कुराते हो,

कभी कभी ।

मैं भूल कर पूजा आरती।

देखने लगती हूँ गौर से,

तेरी चमकती नेह भरी आँखों को।

डूबने के लिये, अथाह प्रेम में।


हाथ पकड़ मेरा, यूँ न तुम देखा करो,

मैं भूल जाती हूँ, समय स्थान और खुद को।

पल पल प्रेम हमारा, यूँ गहराता।

देख गहराई उसकी, सागर भी शर्मा जाता।


आगोश में ले लेती रूह तुम्हारी, मेरी रूह को।

सुकून रूहानी रोज़ ही मिलता मुझ को।

ग़र तुम रोज़ निकल आया करो, उस टिमटिमाती लौ से।

मेरी / तेरी मुलाक़ात रूहानी के वास्ते।


फ़ासले से मिलते थे, सामने सब के,

देखते थे मुझको हिचकते /हिचकते।

नज़र भी नहीं मिल पाती थी,

कसक एक रह जाती थी ।।


बेखटके आ जाया करो।

प्रेम रस पिला कर कुछ,

कुछ पी जाया करो।

नाच लूँगी मैं भी मगन हो कर,

तुम प्रेम धुन बन जाया करो।


सीने से लग जाने की,अपना तुझे बनाने की।

हसरतें जो पाली थी।

प्रेम रस की, इक अनोखी कहानी बनाने को।

तुम लौ से दीपक की, निकल आया करो।

पल दो पल साथ, बैठ जाया करो।


नाच लूँगी घूम / घूम कर, झूम / झूम कर,

शर्म छोड़, छोड़ कर हर डर।

तेरी बाँहों के दायरे में,

प्यारी सी, छोटी सी, दुनिया अपनी बसा लूँगी।

बस तुम निकल आना, पूजा के इस दीपक की लौ से,

अपना देवता, तुझे बना लूँगी ।



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