प्रेम बरखा
प्रेम बरखा
प्रेम बरसा चहुं ओर, बिखरि छटा घनघोर।
आशा अंकुर फूटती, मन में नाचे मोर।।
मन में नाचे मोर, मृदु गूंजे कोयल कूक।
उमड़े मेघ अम्बर, मिटती है मन की भूख।।
झूमता 'सिंधवाल', पाकर ऐसी नव भौंर।
प्रेम से जग धान्य, टूटा हिय देता जोड़।।
प्रेम बरसा चहुं ओर, बिखरि छटा घनघोर।
आशा अंकुर फूटती, मन में नाचे मोर।।
मन में नाचे मोर, मृदु गूंजे कोयल कूक।
उमड़े मेघ अम्बर, मिटती है मन की भूख।।
झूमता 'सिंधवाल', पाकर ऐसी नव भौंर।
प्रेम से जग धान्य, टूटा हिय देता जोड़।।