प्रदीप छंद
प्रदीप छंद
घनन-घनन घन मेघा गरजे, आई पावस रात है
तुम बिन साजन एकांत यहॉं,नैनों से बरसात है।
दिन-दिन करके बीत गए दिन,
व्याकुलता की घात है
चपला चमके पवन पुकारे,
सूखे भाव प्रपात है।
मन अकुलाए तुम बिसराए,
हिय में अब उत्पात है।
बनती मैं तो राधा विरही,
कान्हा प्रिय विख्यात है।
भू नभ नीर व्योम में टूटा, भाव व्यथा हिमपात है
घनन-घनन घन मेघा गरजे, आई पावस रात है।

