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Sonam Gupta

Tragedy

4.3  

Sonam Gupta

Tragedy

पर्दे

पर्दे

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800


फटे हुए पर्दो" को समाज मानती हूं ।

“गिरे हुए मेरे हाथो को कर्जदार मानती हूं”

खो जाती है ज़िन्दगी! जब मैं फटे हुए पर्दो में हाथ डालती हूं।

 

“मेरी कनिका" फटे हुए पर्दो में उलझ जाती है,

जब मै “कर्जदारों” से मिल जाती हूं।

उलझा देते है मुझे “फटे हुए पर्दो के धागे”!

जब मै किसी का दिल लेकर उन फटे हुए पर्दो के “छेदों” से जाती हूं।


गिर जाती है मेरी नज़र 

जब मै “ऐसे समाज" में आती हूं।

“उन” फटे हुए छेदो को देख कर घबरा जाती हूं 

खोलना चाहती हूं उन पर्दो को तोड़ना चाहती हूं उन धागों को !!


वो कर्जदार भी अब बात नहीं करता,

क्योकि....

एक - एक धागे को “गुलाब के काटों" से तोड़ दिया है मैंने

रह गया है तो बस...

हथेलियों पर खून की कुछ बूंदे।


खो दिया है मैंने ये “नीच समाज"।

और फिर चली पड़ी हूं ,

इस नीच समाज के पर्दो को सिलने।।।।


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