पलकें बिछाये बैठे हैं
पलकें बिछाये बैठे हैं
तुम जब भी आना चाहो ! बेख़ौफ !
चली आना, हम ''पलकें बिछाए बैठे हैं। ''
कदम तुम्हारे, जिस जगह ,जहां-जहां पड़े,
उन राहों पर, हम फूल बिछाए बैठे हैं।
करते रहे हम ,तमन्ना !तुम्हारी चाहत की,
आप हमें क्यों ? यूं ,आजमाने बैठे हैं।
आई हो....... तुम !आज भी ख्वाबों में,
हम अपनी मोहब्बत की तस्वीर बनाए बैठे हैं।
तेरी डोली किसी और दर ना चली जाए ,
हम अपने हाथों में, अपना ये दिल संभाले बैठे हैं।
इक दिन तुझे आना ही होगा ! दर पर मेरे ,
हम तेरे लिए ,न जाने ,कितने ख़्वाब सजाये बैठे हैं ?
मेरी मोहब्बत की खातिर, आ जाओ !इस चौखट पर,
तेरी राहों में हम ''पलकें बिछाए बैठे हैं''।
लड़की का जवाब !
आओगे ! जिस दिन तुम ! जीवन में मेरे, सच कहती हूं !
उस दिन के लिए हम भी, अपना दामन बिछाए बैठे हैं।
मेरे ख्वाबों से उतरकर आओगे ,जिस दिन मेरे लिए ,
आंगन की बगिया में ,हम उस प्रेम की बगिया को सजाए बैठे हैं।
हमारा दिल भी धड़कता है, आज भी तुम्हारे लिए ,
अपने' सितमगर ' से हम मोहब्बत की आस लगाए बैठे हैं।

