पिताजी...
पिताजी...
अंगुली पकडकर पिता ने, चलना हमे सिखाया है।
अपने मुँह का कोर भी, उसने हमें खिलाया है।
पत्थर पूज पूजकर के, हमको उन्होने पाया है।
अपने सुख सभी त्यागकर, हमें लाड लडाया है।
खुन पशीना एक कर, हर सुविधा हमको दीनी है।
पिता से बढकर ओर किसीने, न सुध हमारी लीनी है।
हर सांस अपने संतानो के लिए, पिताजीने खर्ची है।
इस संसार मे पिता ही सच्च है, ओर नाते फर्जी है।