पिता
पिता
वो जो मेरा हौसला हुआ करता था कभी
जाने किस बात पर ख़फा है अभी
उसकी ही सरपरस्ती में बनाया है खुद को मैंने
यह अलग बात उसको कहा नहीं कभी
वो ही मेरा रब है वो ही मेरा सब है
रूठा है मुझसे फिर मुस्कुराकर
देख लेता है कभी - कभी
आइना है वो मेरा मैं अक़्स उसका हूँ
जाने क्यों और कहाँ मैं कितना उसका हूँ
वो रहता है मेरे दिल में धड्कनों सा मेरी
मुफ्तिला सा शख्स वो पिता है मेरा
ज़िंदगी भर पिसता रहा वो पिस रहा है अभी भी
ताकि ज़िंदगी कामयाब कुछ बन जाए मेरी।