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पिता !

पिता !

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जिनकी सख्त सी आवाज़ में  

भी ढ़ेरों परवाह छुपी होती है

वो कोई और नहीं बल्कि हमारा  

साहस और सम्मान होता है 

 

जिनकी रगों में ज़ज़्बों का  

अविरल दरिया बहता रहता है

वो कोई और नहीं बल्कि हमारे  

वज़ूद की वो पहचान होता है 

 

कैसी ही परिस्थिति पैदा हो

जो उनसे जूझता ही रहता है

वो कोई और नहीं बल्कि हमारी  

की शोहरत की वो जड़ें होता है 


सारी मुसीबत और परेशानी

को जो हँसकर झेलता रहता है    

वो कोई और नहीं बल्कि हमारे  

रौनक की वो जान होता है 


जो अपनी औलादों के खातिर 

अपनी सारी उम्र जीता नहीं बल्कि  

बिता देता है वो कोई और नहीं बल्कि 

हमारे दिल की धड़कन और सारे घर 

की प्राण प्रतिष्ठा हमारा पिता होता है !


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