पिता
पिता
तपती धूप में उसने मुझे
ऐसे चलना सिखाया,
खुद जलता रहा,
पर मुझे अपनी परछाई में
छुपाया।
चप्पलें तो दोनों के पास
नही थी,
पर कभी उसकी गोद में,
कभी कांधे पर, सफर
कटता आया।
एक अज़ब सी चमक थी
उसकी आँखों मे,
मैंने मुँह में जब निवाला रखा,
क्या पता था, उसने अभी तक
कुछ नहीं खाया।
बंद मुट्ठी मे रखकर पैसे,
उसने मेरा हौसला बढ़ाया।
पर किस हालात में उसने उन्हें
कमाया, यह कभी नहीं बताया।
पिता ऐसे ही होते हैं, जो बस
घर जोड़ने में निकल जाते हैं,
पर कितनी बार टूटे होंगे वो,
यह कभी नही जताया।
तपती धूप में ....