पिता
पिता
आंखों में स्नेह के आंसू
और हाथों में बेटों का हाथ लेकर
पिता कह रहा बेटों से
चाहे बांट लो कमरे सारे
पर आंगन कभी न बांटना तुम
जिस आंगन में बैठ के मैंने
तुम सबको जीवन का पाठ पढ़ाया है
उस आंगन में तुम सब भाई
एक दूजे के प्रति नफरत के बीज ना बोना तुम.....!!
पिता कह रहा बेटों से
अपने हृदय की सारी बातें
पड़ा हुआ आज बिस्तर पर
चाहे बांट लो कमरे सारे
पर घर का द्वार न बांटना तुम
उंगली पकड़ के इसी द्वार से तुमको
मैंने दुनिया दिखलाई है
हर कठिन परिस्थितियों में
इसी द्वार से गुजर कर हम सब ने
जीवन में सफलता पाई है
अब तुम सब से है विनती इतनी भर
जब भी आए कोई कठिनाई इस द्वार पर
हाथ पकड़कर एक दूजे का
डटकर सामना करना तुम.....!!
मां की तरफ देखकर बेटो
ं से
कहता पिता बड़े नरम भाव से
चाहे बांट लो कमरे सारे
पर घर की रसोई न बांटना तुम
माँ तुम्हारी ने बड़े प्यार से
सुबह से लेकर शाम ढले तक
ना जाने कितनी मिष्ठान पकवान
तुम सब के लिए बनाए हैं
और एक एक निवाला बड़े प्यार से
तुम सबको बैठ के खिलाए हैं
रसोई नहीं यह मंदिर है उसका
इसको कभी न बांटना तुम . ...!!
नाजुक बहुत है रिश्ते दिलों के
बच्चों ध्यान से सुन लो तुम
जरा भी तुमने ढीले छोड़े
बिखर जाएंगे पत्तों से
आज करो तुम वादा मिलकर
और मुझे दो यह आश्वासन भी
चाहे आए कितनी भी कठिन परिस्थिति
एक दूजे से मुंह ना फेरोगे तुम
सदा रहोगे मिलकर ऐसे
जैसे दिल में धड़कन तुम
बस इतनी सी ख्वाहिश है मेरी
इसे कभी ना भुलाना तुम
चाहे बांट लो कमरे सारे
पर घर का आंगन ना बांटना तुम....!!