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Dr Priyank Prakhar

Abstract Classics Inspirational

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Dr Priyank Prakhar

Abstract Classics Inspirational

पिता का पितृत्व

पिता का पितृत्व

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पिता है एक ऐसा रिश्ता, होता नहीं जिसका जिकर,

पी लेता सारे दुख दूभर, नहीं करने देता कभी फिकर,


जागे रातों को हमें सुला कर, डांटकर या बहलाकर,

कच्ची पक्की हो जैसी डगर,रहता है वो साया बनकर।


नहीं कभी इक आंसू दिखता, नहीं कभी है वो झुकता,

बनकर घर की सीमा का पत्थर, सारे दुख है वो सहता,


कभी-कभी वो रोता, कभी कभी दिल उसका दुखता,

पत्थर दिल निर्दय है वो निष्ठुर, जब है ऐसी बातें सुनता।


मां करुणा की मूरत, पिता अनुशासन की है सूरत

हर रिश्ते का है अपना जीवन, हर रिश्ता है जरूरत।


ममता के संतुलन को पिता का पितृत्व स्वीकार है

पिता के रिश्ते को अब नयी पहचान की दरकार है।


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