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Kusum Lakhera

Classics Inspirational

4  

Kusum Lakhera

Classics Inspirational

पिता और बाहरी दुनिया

पिता और बाहरी दुनिया

2 mins
310


जब छोटे होते थे तो पिता में ही पूरी दुनिया सिमटी 

सी नजर आती थी

क्योंकि पिता ही वह सेतु से होते थे जो बड़ी जद्दोजहद से

बाहरी दुनिया से घर की चारदीवारी के भीतर


लाते थे ढेर सारे खिलौने ढेर सारी चीज़ें तब लगता

कि मानो पिता ही नहीं वरन वे जादूगर थे

जो एक बाहरी दुनिया से इकट्ठा करते हैं ढेर सारी चीज़ें 

और शाम को सूरज के अस्त होते ही परिवार के लिए 

ले आते हैं खुशियों के पिटारे तब मालूम नहीं था कि 

वे यथार्थ की दुनिया में कैसे खून पसीना बहाते थे


वे अपने दुःख भूलकर हम पर सुख के खजाने लुटाते थे 

वे हिमालय पर्वत से भले ही कठोर से नज़र आते थे 

पर उस पर बहने वाली नदी सम वह भीतर ही भीतर

कई बार बहुत भीग जाते थे पर वह माँ की तरह

हम बच्चों को अपनी परेशानी नहीं बताते थे हम कई

बार उन्हें अक्खड़ की संज्ञा भी मन ही मन दे जाते थे


क्योंकि उनके कंधों पर भारी जिम्मेदारी के

बोझ को हम कहाँ देख पाते थे !

उनके खुरदरे हाथ कभी हमें नजर कहां आते थे

हम तो बस उस थैले को देखते थे जिसमें वे हम बच्चों के

लिए ढेर सारी खुशियों के खज़ाने लाते थे


आज पिता संध्या बेला के सूर्य से निस्तेज नज़र आते हैं

उम्र की ढालान ने छोड़ दिए कई निशान चेहरे पर

मगर फ़िर भी अभी भी हम बच्चों को देखकर उनकी 

आँखें चमक उठती है स्नेह और आशीर्वाद से


बिन बोले भी वह आँखों से कई पैगाम दे जाते हैं

कि बच्चों अपनी दुनिया में निमग्न होते ही भूल मत जाना

उस पिता को जिसने दिया था बचपन में तुम्हें खुशियों का खजाना।


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