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Chandragat bharti

Tragedy Others

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Chandragat bharti

Tragedy Others

पीर के सँग गा रहा हूँ

पीर के सँग गा रहा हूँ

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आँसुओं के गीत बैठा

पीर के सँग गा रहा हूं

छोड़कर जब से गई तुम

ठोकरें ही खा रहा हूं।


जी में आता है कसम से

आज ही जग छोड़ दूं मैं

डूब मर जाऊं कहीं पर

और रिश्ते तोड़ दूं मैं

आज यह निष्ठुर जगत मैं

छोड़कर अब आ रहा हूं।


हाल बेटों का नाम पूछो

बीवियों के दास हैं वो

बोझ हमको मानते पर

सालियों के खास हैं वो 

स्वार्थ में डूबे हुए सब

कब इन्हें मैं भा रहा हूं।


कोसती है रात दिन वो

जो बहू सबसे बड़ी है

मैं भी क्यों न मर गया था

आज यह कह कर लड़ी है

मुंह हथेली में छिपा कर 

मीत रोने जा रहा है ।


यह बहू छोटी तुम्हारी 

रोज देती गालियाँ बस

मारती है पाँव से वह

ठोकरों में थालियाँ बस

मन व्यथित है आज बेहद 

खुद को बेबस पा रहा हूं।


तुम नहीं तो क्या रहा इस

मतलबी संसार में अब

खो गये रिश्ते सभी ज्यों

अजनबी संसार में अब

इसलिए घायल हृदय अब

हाथ में रख ला रहा हूं।


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