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Juhi Grover

Abstract Tragedy Inspirational

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Juhi Grover

Abstract Tragedy Inspirational

पीपल का पेड़

पीपल का पेड़

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पीपल का वो पेड़ हूँ मैं, हमेशा से साया बनकर जो खड़ा रहा,

धूप, आँधी, बारिश में भी अडिग रहकर राहगीरों को बचाता रहा,  

अपनी साँसों तक को दूसरों के नाम कर बस खुश होता रहा,

अपने ही गाँव के लिए सुरक्षा का साजो समान जुटाता रहा।


गर्मी, सर्दी, पतझड़, सावन, हर मौसम को अपनेे सामने देखा,

बच्चों के खेल में मस्त हो कर पंछियों का चहचहाना भी देखा,

निस्वार्थ भाव से बस दूसरों की खुशी में अपनी खुशी को देखा,

सबकों बड़ा होते मैंने देखा, मुझे बड़ा होते किसी ने नहीं देखा।


अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ, किसी को भी फूटी अाँख नहीं सुहाता हूँ,

अपना हुआ करता था कभी, आज पराया हो गया लगता हूँ,

खुद को अकेला पाता हूँ, किसी के सामने अश्क न बहा पाता हूँ,

आँगन का बूढ़ा पीपल हूँ, बस व्यर्थ ठूँठ लायक ही रह जाता हूँ।


मैं बूढ़ा हूँ, कोई बात नहीं, इक दिन सब ने तो हो ही जाना है,

नियति का ही फेर है ये, सब पे ही आना है और सब पे जाना है,

अपनी साँसाें का मोल ही न दे पाओगे तुम, क्या नहीं पछताओगे,

साँसों की कीमत जो समझ गया, उसने न रोना है न पछताना है।


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