पीछे मुड़कर जो देखा...
पीछे मुड़कर जो देखा...
शैशव काल है सर्वश्रेष्ठ समय जीवन का...
प्रकृति के संपर्क में आकर हरेक शिशु
स्वयं को विजेता मान लेता है...!
उसे फिक्र नहीं मुनाफा-नुकसान का...
वो देखता नहीं भिन्नता एक-दूसरे में...
उसके लिए तो सब एक हैं...!
मगर वक्त के साथ हरेक इंसान
जीवन में कई तरह की
मुसीबतों का सामना करता है...
पल-पल बचपन हमें
अपने गुज़रे वक्त के
सुनहरा सपनों की दुनिया में
ले जाता...
हम तो बस उन यादों में ही
थोड़ा-सा जी लेते हैं...!
यहाँ तो ज़माने भर की
जद्दोजहद है... और है बस भीड़,
कतार और सबसे आगे निकल पड़ने की होड़...
ये ज़िन्दगी है भी, तो ये कैसी बेबसी...??
