पिछली गर्मियों की यादें
पिछली गर्मियों की यादें
याद है
वो दिन जब सूरज की तपिश ने,
धरा को चारों ओर से घेरा था,
धूलि धूसर उस उपवन ने भी,
तम का वसन जैसे पहना था,
तन मन में गर्मी ऐसी हावी थी,
जैसे प्रलय का बांधा सेहरा था,
आम के मंजर की सौंधी खुशबू,
उपवन में बस इनका ही बसेरा था,
कहीं सुख की छाया दिखती तो,
कहीं दुखों का घना बसेरा था,
जीवन का ताना-बाना उलझ गया
वीरानों ने हमको ऐसा घेरा था,
अब ना आती शीतल पवन के झोंके,
ऊंची मीनारों ने रास्ता इनका रोका था,
आज भी आती वो पिछली गर्मियों की यादें,
जब अपना पिटारा हमने खोला था!!
