फूटते हैं बसंत में जो फूल
फूटते हैं बसंत में जो फूल
फूटते हैं बंसत में जो फूल अपनी बालियों से
आ गिरते हैं वे जमीं पर पतझड़ में डालियों से,
तमाशा नहीं दिखाते गली-नुक्कड़ में अब मदारी
होते थे खुश जो चंद पैसे व बच्चों की तालियों से,
बड़ा मुश्किल है ग़रीब के लिए ये दौर महँगाई का
वो जुटाता है पैसे काम करके कईं पालियों से,
कर जाते हैं वे जीवन में अक्सर कुछ बड़ा, जिनके
होकर गुजरते हैं बचपन झुग्गी व गंदी नालियों से,
होती नहीं जिनके नसीब में रंग औ' रौशनी कोई
कोई फर्क नहीं पड़ता उन्हें होली से दीवाली से ।