फूल और पत्थर
फूल और पत्थर
कितनी खूबसूरत फूल खिल रहा है
पत्थर से बनी दीवार पर यहां
यहां पर आते जाते सारे लोग
फूल को देखते ही रहते हैं
दीवार पर किसी के नजर जाता नहीं
दीवार अपने सीने पे फूल का पेड़ को
जगह देता है, उसको संभालता है
सुरक्षा देती है
उसे साथ पा कर अपार आनंद पाता है
दीवार भी चाहता कोई उसे
प्यार भरे नजरों से देखे
उसको भी फूल जैसा प्यार करे
उसको समझे
उसका दर्द को महसूस करे
पर ऐसा होता नहीं
निष्प्राण दीवार को प्यार मिलता नहीं
फिर भी दीवार निराश होता नहीं
वो तो सिर्फ फूल को प्यार करता है
फूल अच्छे से खिले, सब उसे प्यार करें
उसे सबकुछ दे देना चाहता है
क्योंकि देने में जो खुशियां है
वो पाने में कहां ?
प्यार का तो दूसरा नाम है त्याग
बस वो फूल को
प्यार करता है, और कुछ नहीं .....

