फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी
बड़ी बड़ी बातें कर लें पर,
यह कड़वी सच्चाई है।
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी,
एक यहाँ मिल पाई है।।
जन कल्याण के ख़ातिर हमने,
बनती सरकारें देखी।
वोट के ख़ातिर नेताओं की,
चलती मनुहारें देखी ।।
वादों से फिरते नेताओं,
को देखा उसके पश्चात।
और कभी देखा है उनको,
करते जनता पर ही घात।।
प्रश्न यही क्या आज करें हम,
सम्मुख गहरी खाई है।
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी,
एक यहाँ मिल पाई है ।।
माना हमने, देश बड़ा है,
और हजारों मसले हैं।
हर मसले का हल हो ऐसी,
उगा रहे व फसले हैं।
लेकिन लोगों की सब माया,
खाली पेट रहें कैसे।
हमीं न होंगे तो क्या होगा ,
बोलो दर्द सहे कैसे ।।
इतनी सी जो बात न समझे,
समझो वो हरजाई है।
फुटपाथों को कहाँ झोंपड़ी,
एक यहाँ मिल पाई है ।।
"अनन्त" तन भी नंगा है और,
गरमी सरदी सहता है।
गांधी का है देश देर तक,
सदमें सहता रहता है।।
आसमान को छत कहकर वो,
फुटपाथों पर सो जाता।
दोषी अपनी ही किस्मत को,
इस पर भी वो ठहरा था।।
गले गले तक आ पहुंचा जल,
तब ये बात उठाई है ।
फुटपाथों को कहां झोंपड़ी,
एक यहाँ मिल पाई है ।।
