फतह
फतह
हर कोई चाहता है करना फतह
फहराना अपनी कामयाबी का परचम
पर
उससे पहले
उबलना पड़ता है
कठिनाइयों की कड़ाही में
साफ करने पड़ते हैं
मुसीबतों के जाले
थाह लेनी पड़ती है
उन सुरंगों, घाटियों को
जहां सदियों से
किसी ने पांव नहीं रक्खा
चढ़नी पड़ती है चढ़ाई
लहूलुहान कदमों से।
सिकन्दर होने के लिए
चाहिए अडिग संकल्प
महावीर बनने के लिए
अविचल तपस्या
जीतना पड़ता है
खुद से खुद को
हां.... खोना भी पड़ता है
खुद में खुद को।
क्यों कि फतह
नहीं है
नानी के घर का लड्डू
कि आपको
सीधे ही मिल जाए।