फरवरी
फरवरी
फरवरी की शाम थी
मन कुछ भारी भारी सा था
घर से निकलते ही
तुमसे मुलाक़ात हुई
तुम चुपचाप अपने धुन में
चली जा रही थी
मैंने कुछ देर रुक कर
तुम्हें निहारना ठीक समझा
तुम्हारे चेहरे पर एक भी
शिकन नहीं थी
दर्द नहीं था कुछ भी खोने का
जैसे ख़ुदा ने अपना हर रहम
सिर्फ तुम्हे ही बख्शा हो
मेरे सारे दिल का दर्द
एक पल में गायब हो गया
लगा एक बार तुम्हें छू लूँ
तुमसे कहूँ, कैसे किया तुमने यह ?
पर तब तक तुम जा चुकी थी
फरवरी का महीना
अचानक से मेरे ज़िन्दगी के
कैलेंडर में अपना महत्व बना गया।

