ख्वाइश
ख्वाइश
तुम्हें देखती हूँ तो
ख्वाइश जगती है कि ज़िन्दगी को
और एक बार नए सिरे से शुरू करूँ।
तुम्हें देखती हूँ तो
ख्वाइश जगती है दिन का उजला धूप बनूं
तुम्हें देखती हूँ तो
ख्वाइश जगती है तुम्हारे सरहाने बैठे मर जाऊं।
तुम्हें देखती हूँ तो
ख्वाइश जगती है तुम मेरे अंदर समा जाओ
तुम्हें देखती हूँ तो
ख्वाइश जगती है तुम्हें कुछ दूं
बसंत की वह रात कैसी रहेगी ?
जो सोलह साल के मुकाबले कम पड़े।

