प्यारे बसंत
प्यारे बसंत
उस दिन छज्जे पर लेटे हुए
हलकी सी आंख लग गयी
अचानक तुम दिखे सामने
तुम्हारे उस दोपहर सी
मुँह पर बसंत सी हँसी
प्यार का आग़ाज़ कर रही थी
ज़ोर ज़ोर से,
मैंने महसूस किया
उस ठन्डे से दिल को
जो मौसम के साथ
कभी कब्र बदल जाता था
और मुस्कुरा उठी यह सोचकर
अच्छा हुआ तुम और बसंत, दोनों ही,
अब अनजान हो चुके हो मेरे लिए।