माँ
माँ
शाम ढल चुकी थी रात की बाहों मैं
आँखों ने कह दिया
अब इंतज़ार करके क्या होगा
फिर भी दिल कहा सुनता है किसी की।
सर्दी हवा के साथ दोस्ती गहरी
करने की साज़िश कर रही थी
दरवाज़े मैं तुम्हारी दस्तक मेरे अँधेरे से
कमरे में रौशनी लेकर आयी माँ।
हम दोनों अपने पूरे दिन के
दुःख सुख के हिसाब लेकर बैठे
आग के इर्द गिर्द
जैसे नया कोई रिश्ता बुन रहा हूँ।
वही कुछ पुराने सवाल भी थे
नई बातों के साथ
थोड़ी सी ज़िन्दगी में
कुछ यही पल थे अपने पास।
तुम्हारी हर बात निराली थी माँ
तुम्हारी आवाज़, तुम्हारी फ़िक्र,
तुम्हारी हर बात जिस की
सऊदी सी खुशबू
मेरे दिल को छू जाती थी।
वह रातें कुछ ओर थी
आज शाम कुछ ओर है
माँ तुम तब थी
और आज ज़िन्दगी तुम्हारे बिना
काँटों का हार है।।