काश
काश
काश!
तुम समझ पाते
मेरे गुस्से के पीछे
दबे हुए मेरे प्यार को
तो आज ज़िन्दगी अपनी
कुछ और होती!
काश!
तुम समझ पाते
मेरे हर अनकहे लफ्ज़
मेरे हर कहे हुए लफ़्ज़ों
के बीच
तो आज ज़िन्दगी अपनी
कुछ और होती !
काश!
तुम समझ पाते
मेरे उस हर आंसू को
जो मेरे इस मुस्कुराते हुए चेहरे से
ढक जाती थी
तो आज ज़िन्दगी अपनी
कुछ और होती !
काश!
तुम समझ पाते
मेरे हर एक दर्द की आहट को
जो मेरे लरखराते सँभालते
क़दमों के अंदर
गुमसुम से छुप जाते थे
तो आज ज़िन्दगी अपनी
कुछ और होती!
काश!
तुम समझ पाते
मेरा वह बोलना
कि चले जाओ मुझसे दूर
इतना की नज़रें तुम्हे कभी
ढूंढ ना सके
और अगर बोलते वक़्त
उस मैं बंद मेरी तन्हाई को
अगर तुम पढ़ पाते
तोह आज ज़िन्दगी अपनी
कुछ और होती
