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Neeraj pal

Abstract

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Neeraj pal

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फरियाद।

फरियाद।

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आ पड़ा अब द्वार तुम्हारे, दर्द भरी एक फरियाद लिए।

भीख दया की तुम से माँगूँ, कृपा की एक आस लिए।।


अर्चन- वंदन मैं न जानूँ , दुनिया को ही सब कुछ माना।

खाया धोखा जब अपनों से ही, पशुवत जीवन हुआ समाना।।


आ पड़ा अब द्वार पे तेरे, कोटिन पाप हरो अब मेरे।

अंतर्मन प्रेम से भर दो, आश्रय दाता तुम हो मेरे।।


मेरे-तेरे के भ्रम में पड़कर, पाप-पुण्य का भेद न पाया।

संचय कर जीवन नर्क बनाया, छल-कपट से है धन कमाया।।


जीवन का असली ध्येय न समझा, माया के जाल में उलझा।

आत्म-शांति की तलाश अधूरी, तुम बिन यह कैसे हो पूरी।।


दीन दुखियों के तुम हो सहारे, इस कारज तुम भू-लोक पधारे।

सत्संग सुधा रस का पान कराकर, बदल दिए सगरे भाग्य हमारे।।


जिसने जीवन में गुरु को माना, प्रभु ने उसको ही जाना।

"नीरज" जप ले तो गुरु की माला, बिन गुरु जीवन नर्क समाना।।


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