पहली किरण का पैग़ाम
पहली किरण का पैग़ाम
छिप गया चंदा सूरज जागा भोर हुई दिन नया आया
बिस्तर त्याग देख धरा से पक्षी उन्मुक्त गगन का राजा
लालिमायुक्त स्वर्णिम लाल सूर्य की पहली किरण का पैग़ाम
हो दर्शन इसके नयी स्फूर्ति प्रदान जिंदगी को मिलता नया आयाम
सुंदर चितवन स्थिर मन कोमल वाणी भुजाओं में आत्मबल
शारीरिक रूप से बन बलवान कार्य प्रगति उन्नती पर दे ध्यान
हर दिन सुन्दर हर पल उज्ज्वल होगा तेरा न करना अभिमान
पहली किरण को सूर्य की नतमस्तक हो कर तू प्रणाम
चहूं और फिर से फैली उजियारी रोशन हुआ सारा जहाँ
उठो 'मानव' निन्द्रा तोड़ो 'किरण' का तुमको आया पैग़ाम।
