फिर एक तलब लगी
फिर एक तलब लगी
1 min
274
फिर एक तलब लगी अपनी प्यास को,
तेरी प्यास में मिलाने की, फिर एक तलब लगी
तू आए या ना आए, कोई फर्क नहीं
तेरे साथ बिताये लम्हे थे ,ख्यालों में कहीं
बंद पलकों पर जब तेरे, प्यासे बदन की छवि बनी,
हर तलब तब, खुद ~ब ~खुद खूब सजी
पसीने से लथपथ तब इस बदन में कहीं,
तेरी तलब का नशा ,और चढ़ा यहीं
तलब को बुझाने की, तब एक होड़ लगी,
लबों पे तेरे नाम की, फिर नई झड़ी लगी
कुछ पलों के जोश में, धड़कने धड़क के थकीं,
तेरे साथ की गर्मी की फिर एक तलब लगी।