फैज़ान
फैज़ान
उसकी सोच में अँधेरा था
मेरी बातों में सवेरा था
वो आसमान का मिज़ाज़ था
मुझे ज़मीन का एहसास था
वो बुज़दिली में जीता था
मैं घूँट कड़वा पीता था
वो बिना बात का मज़ाक था
मैं बेशुमार प्यार था
वो सूना सा बाज़ार था
मैं अल्लाह की मज़ार था
वो खो गया तो खोने दे
मैं उठ गया तो जीने दे
वो झूठा जालसाज़ था
मैं सच्ची एक आवाज़ था
वो कायर था, नापाक़ था
मैं शेरदिल साफ़ था
वो खून गंदा बेईमान था
मैं वीर अमर फैज़ान था।