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Madan lal Rana

Inspirational

4  

Madan lal Rana

Inspirational

पगडंडी

पगडंडी

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कहीं टेढ़ी

कहीं सीधी

कहीं ऊंची

और कहीं नीची


कभी लहराती

कभी बलखाती 

कभी चलती

कहीं रुक जाती


हो कोई अनाड़ी

चाहे हो अंजान

हर एक को उसकी

मंंजिल तक पहुंचाती


हर गली हर मुहल्ले

खेेत और खलिहान

गांव के मंदिर और 

श्मशान तक भी जाती


तेरी कहानी तो है

सबसे पुरानी

तेरी चमक है

सबको लुभाती


मगर थोड़े दंभी और

हैं थोड़े सरफिरे भी 

जिसे तेरी जरुरत की

समझ नहीं आती


मगर ना तू है स्वार्थी

ना है घमंडी

हर एक को मंजिल पे

तू लाती पगडंडी।


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