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ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy

3  

ARVIND KUMAR SINGH

Tragedy

पदलोलुपी

पदलोलुपी

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कर्कश है जो तेरी वाणी

कुटिल तेरी मुस्‍कान है, 

गैरों पर जो रौब जमाए

वो कृत्रिम तेरी शान है।


इंसानियत का ढोंग रचाए

पर प्रवृति तेरी घृणित है,

सामर्थ्‍यवान बन बैठा जहां भी

उत्‍थान वहाँ का भ्रमित है।


मानव चोला धारण कर

नृसंष रुप दिखलाता है,

संवेदनाऐं तेरी मूर्तवत

असुरों से तेरा नाता है।


शैय्या कोष्‍ठ गर्म हैं तेरे

मयखानों से पानी आता है,

मूकद्रष्‍टा बन जाये तू

जब त्राहिमाम कोई गाता है।


परोपकार की बात तो छोड़ो

राह में रोड़े तू ही बिछाता है,

बैठ आसमां देखे तमाशा

पांव जमीं पर लटकाता है।


बड़ा नहीं हो सकता है वो

जिसको नहीं झुकना आया,

सच है फलदार वृक्ष ही देता

फल के साथ सबको छाया।


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