पचपन में बचपन
पचपन में बचपन
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पचपन में बचपन
अपने आपको दोहराता है
पर कोई कहाँ समझ
पाता है
हर कोई बचपन की
ज़िद समझता है
पचपन की ज़िद का
मजाक उड़ाता है
और न जाने क्या क्या
सुनता है
काश कोई समझ पाता
चेहरे की झुर्रियां
और अधेड़ उम्र के
पड़ाव में जब शरीर
साथ नहीं निभाता
तब मन बच्चा बन जाता है
काश कोई बिना कहे ही
समझ पाता
पर ये काश काश ही
रह जाता है
कोई नहीं समझ पाता है
पचपन का बचपन