पचास की दहलीज़ पर
पचास की दहलीज़ पर
कभी कभी ऐसा लगता है,
कहीं मैं बूढा तो नहीं हो रहा हूँ|
बीते दिनोीं की यादों के मोती,
जीवन की माला में एक एक कर पिरो रहा हूँ
कभी कभी ऐसा लगता है, ..
अपने और अपने बच्चों के
भविष्य के सुनहरे सपनों में खो रहा हूँ
कभी कभी …
अच्छे दिन, बुरे दिन,
अच्छे बुरे लोग,
ज़िंदगी के उतार चढाव में
कभी हंस रहा हूँ, कभी रो रहा हूँ
कभी कभी....
पहाड़ों में कुछ दिन,
भीड़ से थोडा दूर, प्रकृति के थोड़ा पास, सुकून से सो रहा हूँ
कभी कभी.... ..
बच्चों की खुशी में ठहाके ,
उनके गम में आँखें भिगो रहा हूँ |
कभी कभी …
इस बदलते डॉक्टर - पेशेंट रिश्तों में
अपने प्रोफेशन को एक बोझ की तरह ढो रहा हूँ
कभी कभी …
कुछ लम्हें शांति से अपने आप से
बातें करके ,
खुद को आध्यात्मिकता में डुबो रहा हूँ
कभी कभी …
बीते कल की खेती काट रहा हूँ,
आने वाले कल के लिए कुछ अच्छा बो रहा हूँ
कभी कभी …