"पैसा"
"पैसा"
इस पैसे के पीछे भाग रहे है, बहुत लोग
इस पैसे को खुदा मान रहे है, बहुत लोग
सब जानते है, पैसा साथ नहीं जाता है
फिर भी पैसे में समय गंवा रहे है, लोग
पैसे खातिर, अंधे होते जा रहे है, लोग
पाप की गठरी, पल्लू बांध रहे है, लोग
पैसे से अतिरिक्त सांसे पा लेंगे, लोग
यूँ ही भ्रम में जिंदगी जी रहे है, लोग
यदि कोई पैसा ईमानदारी का होता है
पूंछ मत उससे कितना सुकूं होता है
ईमान के पैसे से महक रहे है, वो लोग
जो ईमान को सजा रहे है, नित रोज
वो ही पैसा सदा घर में बरकत लाता है
जो इस खून-पसीने से कमाया जाता है
जो गलत तरीके से पैसा कमा रहे है, लोग
वो पेट पर चर्बी पहाड़ बना रहे है, बहुत
खाना पचाने हेतु मीलों चलते है, वो रोज
जो पैसे के साथ पाप भी कमा रहे है, रोज
उन्हें खुदा कैसे यहां पर माफ कर देगा,
दूजो का खूँ पी पैसा कमा रहे है, जो लोग
उस भगवान को भी देते है, रिश्वत पैसे की
भगवान नहीं स्वीकारते, बेईमानी की गोत्र
क्या देंगे, उसे कायनात का है, वो अफ़रोज़
जिसके टुकड़ों पर पल रहे है, हम लोग
वो ईश्वर तो भूखा होता है, बस भाव का
उसको न चाहिए, कोई बेईमानी अखरोट
उसके चढ़ाओ ईमान कमाई प्रसाद, रोज
वो भोग लगायेगा, जमीर की करो, खोज
जो अधर्म के पैसे पर बहुत इतराते है,
उनकी कब्र पर दीये न जलते, एक रोज
इसलिये ईमान से कमा तू, पैसा साखी
एक हिस्सा नेकी हेतु रखने की सोच
जो पैसा नेकी से कमाया हुआ होता है
उस पैसे से ही होते है, अच्छे कार्य रोज
हलाल कमाई से मिलता भीतर संतोष
श्रम से पैसा कमा, बन जग-दल सरोज।