पैग़ाम-ए-मोहब्बत
पैग़ाम-ए-मोहब्बत
ज़िन्दगी भी क्या खूब रंग दिखाती है ,
चाहत हो जिसकी उसी से दूर ले जाती है।
एक समारोह में हमारी मुलाक़ात हुई थी ,
कभी न भूल पाऊँ जिसे ,कुछ ऐसी ही बात हुई थी।
मोहब्बत का उनकी तरफ से पैग़ाम आया था
शायद बरबादी का पूरा सामान आया था।
इस कदर हम आज बरबाद हो चुके हैं ,
अपनी सारी खुशियों को भी खो चुके हैं,
पर समाये हैं दिल में वो आज भी याद बनकर
मेरी अधूरी मोहब्बत का एहसास बनकर।
