पावस...
पावस...
वो क्या मौसम है!
हरेक बूंद में एक कशिश है...
दिल में दबी-दबी कोई आग-सा
जलता है, मगर
कहीं धुआं नहीं उठता।
कहीं इज़हार-ए-मोहब्बत की तपिश,
तो कहीं अल्फाज़ निकलता नहीं...
किसी को एहसास-ए-मोहब्बत है,
तो कहीं आँखें नम हैं...!
कब तक यूँ बारिश में शायर का
शायराना अंदाज़-ए-बयां होगा...?
किस इंतज़ार में है वो तन्हा दिल,
जिसे किसी दिल में समाने का बहाना
नहीं मिलता...?
जब-जब भी पावस की बूंदों में
ये खूबसूरत दिल जलेगा,
तब-तब उस नीले आसमां में
ग़म की घटा छायी रहेगी...
हर साल पावस का आगमन होगा,
हर बार कोई-न-कोई दिल रोएगा...
लेकिन फिर भी कहीं-न-कहीं
एक आस लगी रहती है दिल में
कि एक-न-एक दिन मौसम रंग लाएगी...

