पारिवारिक कलह
पारिवारिक कलह


जब हो कलह परिवार में।
बसती घृणा घर–द्वार में।।
दो भाइयों के बीच में,
दौलत-कलह के कीच में।
हों पुत्र जब लड़ने खड़े,
संकीर्ण उर माँ रो पड़े।
कह तुच्छ निज चीत्कार में।
जब हो कलह परिवार में।।
तेरी सुता-तिय-माँ-बहन,
जब गालियाँ देते वदन।
छोड़ा नहीं निज बाप को,
अपना रहे खुद पाप को।
अश्लीलता ललकार में।
जब हो कलह परिवार में।।
माँ-बाप-तिय-भाई-बहन,
कर एक–दूजे को सहन।
प्रतिघात देते वज्र सम,
हैं फोड़ते परमाणु–बम।
उलझे हुए बेकार में।
जब हो कलह परिवार में।।
दो गज धरा पाने सखे,
सम शत्रु भाई जब लखे।
तब राम-लक्ष्मण की कथा,
सुनना जगत में है वृथा।
रावण सदृश व्यवहार में।
जब हो कलह परिवार में।।
घर खूबसूरत था मगर,
अब लग रहा है खण्डहर।
था स्वर्ग-सा पहले सुखद,
अब नरक जैसा है दुखद।
सुख जल गया अंगार में।
जब हो कलह परिवार में।।