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Sweta Parekh

Classics

4  

Sweta Parekh

Classics

पानी सी मैं बनना चाहूँ

पानी सी मैं बनना चाहूँ

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पानी सी मैं बनना चाहूँ

लहरों सी मैं उछलना चाहूँ,

शिला, पत्थर, पर्वतों से टकरा के

और भी दृढ बनना चाहूँ !


कहते जल जीवन है, पर जीवन

अपना जल सा बनाना चाहूँ,

जितना निर्मल, सरल ओर साफ़

उतना ही गहरा, तूफानी ओर बेबाक!

रंग रूप, आकर से परे,

हर घड़े में सरलता से ढले !

पानी सी में बनना चाहूँ !


ना कोई इसकी सीमा,

ना कोई इसका बंधन,

मस्त लहरों सा उछलता,

अपने में ही खुश रहता ये अमृतधन !


झील से नदियों तक और

नदियों से समंदर तक बहता,

अपनी राहें खुद ही चुनता और

चलता रहता ये जलतरंग !

पानी सी मैं बनना चाहूँ !


पहचान ऐसी की कोई इसका विकल्प नहीं,

ठहराव ऐसा की शांति की पुकार यही,

वक़्त आने पर तूफान की गूंज भी यही

और शक्ति की प्रचंड लहर भी यही !

पानी सी मैं बनना चाहूँ !


कितनी भी ठोकरें खाने पर

गति ना इसकी थमती,

कमजोर ना पड़ता इसका साहस,

टूटती ना इसकी इच्छा शक्ति !

पानी सी मैं बनना चाहूँ !


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