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नवजीवन

नवजीवन

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फिर जीने को नई उम्मीदें जगी है

फिर नए रास्तों पर नज़रें लगी है


अतीत के कष्टों से निकलकर

आँखें उजियारी भोर तलाशने लगी है


आज जी चाहता है फिर से खुल के हँसने को

सारी तकलीफें भूल, खुल के जीने को


उड़-उड़कर कह दूँ ज़माने से

मैं नहीं तैयार हार मानने को


जी चाहता है इस नव जीवन का

खूब करूँ श्रृंगार


तूने इतना दिया दाता,

तेरा बहुत बड़ा उपकार।।


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