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Shailaja Bhattad

Abstract

4  

Shailaja Bhattad

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"नव रस"

"नव रस"

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1. श्रंगार  रस

स्वीकृति के आंगन में।

अनुभूतियों का विस्तार है।

 मन के मन से।

 जुड़ते तार हैं।

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2. वात्सल्य रस

प्यारी नन्ही परी।

पहेली सुलझाते।

खिलाते-खिलाते।

पलना में सोने चली।

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3. शांत रस

भावों की शीत लहर।

 कोई व्यवधान कहां।

 संस्कृति का गौरव गान जहां ।

 है ह्रदय तीर्थ वहां ।

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4. वीर रस 

चींटी के लिए पहाड़।

शेर की दहाड़।

मेरा भारत।

महान।

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5. हास्य रस

 संपूर्णता में रहती हो।

 अपूर्ण कहती हो।

 पूरे घर का खाना।

अकेले हजम करती हो।

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6. भयानक रस

 रूप विकराल ।

रुंडमाल।

 रक्त रंजित भाल।

 विनाश काल।

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7. रौद्र रस

 शिव तांडव।

 प्रचंड प्रहार।

 हुई ललकार।

 मचा हाहाकार।

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8.अद्भुत रस

 चढ़ी एवरेस्ट बिना पैर।

 हुए रोंगटे सबके खड़े।

 दांतो तले उंगली दबे।

 आंखें फाड़े खड़े रहे।

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9.करुण रस 

कटी पतंग सी खड़ी।

 भीगी पलकें।

 सवालों पर सवाल।

 तलाशती जवाब।

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