STORYMIRROR

Dinesh Dubey

Abstract

3  

Dinesh Dubey

Abstract

नूर झलकता

नूर झलकता

1 min
18


नूर झलकता है तेरी आंखों से,

झरती है कलियां तेरी लबों से,

होती है मेरी दिन रात तेरी ,

पलकें, झपकने से।

तेरे अंग अंग से है टपकता जैसे,

मय भर भर प्याला।

तेरे जुल्फों से है बिखरती है जैसे,

बाहर खुशबू की ।

तेरे होंठों से निकलते है हर लफ्ज़ जैसे, बांसुरी का सुर ,

तेरे चेहरे का नूर लगता जैसे,

तारों सी दमक ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract