नुक्कड़ का सब्जी वाला
नुक्कड़ का सब्जी वाला
कमरे से बाहर आंगन का कोना
जहां से गली का रास्ता तिकोना
थोड़ी दूर बस वहां से इस्त्री वाला
जिसका यार नुक्कड़ का सब्जी वाला।
दिखता रोज वो आवाज लगाता
काठ की ठेली में कभी एक किनारे
पानी छिड़कता वो गमछा फटकाता
खड़ा होता बिजली के खंभे सहारे।
हर इंसान को वह था बुलाता
हर कोई जो काम से आता
सब्जी का दाम कभी कम कभी ज्यादा
ताजी लाया हूं ये विश्वाश था दिलाता।
कभी फलों से लदी रहती ठेली
कभी आलुओं की लगी रहती ढेरी
सामने रहता था गोलगप्पे वाला
अधेड़ उम्र का वो रंगीन छाते वाला।
लेने को कभी चली जाती मैं भी
सजी देखकर उसकी फलों की ठेली
मुस्कुराते सबसे करता बातें था वो
और दादा बुलाता हर छोटे बड़े को।